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Rising Inflation : सरकार की महंगाई बढ़ाओ नीति ने करोड़ों लोगों को बे स्वाद खाना खाने किया मजबूर

महेन्द्र कुमार साहू/रायपुरRising Inflation : पिछले लंबे समय से आम आदमी त्राही माम-त्राही माम कर रहा है। पर यह किसी को सुनाई नहीं दे रहा है। और आम आदमी जानता है, उसका कोई सुनने वाला नहीं है। जिंदगी की उधेड़बुन में हर सांस को जिये जा रहा है। मेहनत की उबाल से आने वाले पसीने को पोछता उफ तक न कहता आगे बढ़ता जा रहा है। आज महंगाई सर तक पहुंच गई है। जो राजनीति के शतरंजबाजों के लिए एक खेल मात्र है।

140 करोड़ देशवासियों के इस देश में बिजनेसमेन, नेता, शासकीय विभागों में कार्यरत कर्मचारी व कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को छोड़कर सबको महंगाई सताने लगी है। अपनी छोटी-बड़ी जरुरतों को पूरा नहीं कर पाने का गम है। अपने बच्चों को सही तालिम नहीं दिला पाने का गम है। लगातार कम हो रहे रोजगार का गम है।

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Rising Inflation : देश के अधिकतर लोग महंगी पेट्रोल-डीजल की मार से जूझ रहे हैं। पारंपरिक रसोई में सुखी लकड़ी का उपयोग कर लोग खाना बनाते थे। जिन्हें रसोई गैंस का लालच दिलाया गया। और अब रसोई गैंस को महंगाई की भेंट चढ़ा दी गई है। और एक बार फिर लोगों को सोचने पर विवश किया जा रहा है।

आम लोगों के लिए अति आवश्यक सामग्री में चांवल, दाल और सब्जी का नाम आता है। 10 रुपये किलो बिकने वाला चांवल आज 40 रुपये के ऊपर चला गया। 10 रुपये किलो बिकने वाला टमाटर 80-100 रुपये पहुंच गया। वहीं भिण्डी 60 रुपये, लौकी 30 रुपये, परवल 60, कुंदरू 50 रुपये, बरबट्टी 80 रुपये, सेमी 120 रुपये पहुंची चुकी है। सब्जी के स्वाद को बढ़ाने में टमाटर की भूमिका अधिक मानी जाती है। जो अब आंखे तरेरती नजर आ रही है।

Rising Inflation : इतना ही नहीं प्याज, आलू, लहसून, अदरक, जीरा लोगों को मरने को मजबूर कर रहे हैं। हालांकि महंगाई पर कुछ लोगों का वक्तव्य हो सकता है। वक्त के साथ चीजों की कीमतें बढ़नी स्वाभाविक है। साथ ही इन वस्तुओं के दाम बढ़ने से किसानों को कीमत के रूप में लाभ मिल रहा है। लेकिन शत्-प्रतिशत ऐसा नहीं है।

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जिन धन्ना सेठों की जेब भरी होती है। वे कभी महंगाई की बातें नहीं करते हैं। 140 करोड़ देशवासियों के देश में जिस तेजी से महंगाई बढ़ रही है। उस तेजी से लोगों की आमदनी नहीं बढ़ रही है। रोजगार के अवसर नहीं उपलब्ध हो पा रहे हैं। बल्कि दिनों दिन रोजगार के अवसर छिनते जा रहे हैं। जो लोगों को निराशा के कगार पर ले जा रही है।

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